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मेरे गीत समर्पित उसको

कमलेश द्विवेदी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :295
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9589

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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे


हरफनमौला कवि : डॉ.कमलेश द्विवेदी


डॉ. कमलेश द्विवेदी हरफनमौला कवि हैं. ये जिस विधा को छूते हैं, उसी को चमका देते हैं। कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे, मगर वह मूलतः गीतकार ही होता है। कमलेश भी काव्यमंचों पर अपने व्यंग्यों के बाण चलाकर लोगों को उसी तरह घायल करते रहे हैं, जैसे तिरछे नैन घायल कर देते हैं, फिर भी प्यारे लगते हैं। मगर इनके गीत उन व्यंग्यों से भी अधिक विद्धकर और ध्वन्यात्मक हैं। इनके गीत सनातन मानव संवेदनाओं से जुड़े हुए हैं और सहज-सपाट न होकर बबूल के काँटे की तरह बींधकर टीस पैदा कर देते हैं। अच्छे गीतों की यही पहचान भी है। उस चुभन में जो आनंद आता है, वह आचार्यों की दृष्टि में ब्रह्मानंद-सहोदर होता है। जिसका जीवन `आज सफर से लौटे हैं हम, कल फिर जाना है' जैसा चलायमान हो, वह एक साँस में शताधिक विविधवर्णी प्रेमगीत गा दे, तो सुखद आश्चर्य होता है.क्योंकि आज के तकनीकी युग में प्रेम का भाव दुर्लभ हो गया है। एक आश्वस्ति भी जगती है कि आज के घोर बेसुरे दौर में, कमलेश जैसी युवा प्रतिभाओं के बल पर हिन्दी गीत-धारा निरंतर प्रवाहित होती रहेगी। मेरा विश्वास है - `कहीं नहीं हैं हम चित्रों में, फिर भी लगता है हम हैं' के समर्थ गीतकार को हर पाठक अपने दिल के अलबम में रखना चाहेगा।

- डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र

देवधा हाउस,
5/2 वसंत विहार एन्क्लेव
देहरादून-248006
मो.09412992244

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